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बन प्रभू चरनन अनुरागी
रचित: कमलेश्वर प्रसाद त्रिपाठी (नागपुरी)

मन रे ै ै ै  बन प्रभु चरनन अनुरागी - 2
काहे वृथा भटके है जग में - 2
ये झूटी दुनियॉं सारी
मन रे........................ ।।

1. भटक-भटक कर मनवा तूने
तन का किया बेहाल
मृगतृष्णा को लिये हुए तू -2
क्यों झूटा बुनता जाल
    मन रे........................ ।।

2. दुनियॉं के रस-राग में तूने -2
रसना बहुत चलाई
कर चालाकी प्रभु से तूने
उमरिया वृथा गंवाई -2
    मन रे........................ ।।

3. अभी भी चेतले ऐ मन मूरख -2
कर सपना साकार
आत्मजोत को करके उजागर
कर जीवन साकार
तू ;नैया लगा ले पारद्ध
    मन रे........................ ।।



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जय माता दी
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