हरि-हर बोल
हरि-हर बोल
तू हरि-हरि-हरि-हरि बोल-
मस्त-मग्न रसना रस घोल ।
तू हरि-हरि-हरि-हरि बोल
मस्त-मग्न रसना रस घोल ।।
1. चलते-फिरते नाम हरि का ।। 2 ।।
सोते-खाते जाप हरि का ।। 2 ।।
बोल तू मीठे बोल,
जीवन में रस मीठा घोल ।।
हरि-हरि ----------------- ।।
2. ठोकर जब भी तुझपे लगती ।। 2 ।।
बैठ संभल कर करले भक्ति ।। 2 ।।
छोड़ तू कड़वे बोल,
भला-बुरा हृदय में तोल ।।
हरि-हरि ----------------- ।।
3. बड़े भाग मानुष तन पाया ।। 2 ।।
भजले हरि को सफल कर काया ।। 2 ।।
ये देह बड़ी अनमोल,
जीवन में अमृत रस घोल ।। 2 ।।
हरि-हरि ----------------- ।।
4. बन जा हरि के ऑंख का तारा ।। 2 ।।
हिरदय जोत जगा बन प्यारा ।। 2 ।।
;सत संगत में रह बन प्याराद्ध
सत संगत रस घोल
सत-गुरू की तू जै-जै बोल
श्री हरि की तू जै-जै बोल ।।
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रचित: कमलेश्वर प्रसाद त्रिपाठी (नागपुरी)
तू हरि-हरि-हरि-हरि बोल-
मस्त-मग्न रसना रस घोल ।
तू हरि-हरि-हरि-हरि बोल
मस्त-मग्न रसना रस घोल ।।
1. चलते-फिरते नाम हरि का ।। 2 ।।
सोते-खाते जाप हरि का ।। 2 ।।
बोल तू मीठे बोल,
जीवन में रस मीठा घोल ।।
हरि-हरि ----------------- ।।
2. ठोकर जब भी तुझपे लगती ।। 2 ।।
बैठ संभल कर करले भक्ति ।। 2 ।।
छोड़ तू कड़वे बोल,
भला-बुरा हृदय में तोल ।।
हरि-हरि ----------------- ।।
3. बड़े भाग मानुष तन पाया ।। 2 ।।
भजले हरि को सफल कर काया ।। 2 ।।
ये देह बड़ी अनमोल,
जीवन में अमृत रस घोल ।। 2 ।।
हरि-हरि ----------------- ।।
4. बन जा हरि के ऑंख का तारा ।। 2 ।।
हिरदय जोत जगा बन प्यारा ।। 2 ।।
;सत संगत में रह बन प्याराद्ध
सत संगत रस घोल
सत-गुरू की तू जै-जै बोल
श्री हरि की तू जै-जै बोल ।।
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जय माता दी
आपका दिन शुभ हो.
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