जग हिन्दीमय कर दो
जग हिन्दीमय कर दो रचित: कमलेश्वर प्रसाद त्रिपाठी ( नागपुरी) जग-जगमग जग कर दो जग हिन्दीमय कर दो मॉं सरस्वती शारदे - ऐसा वर दे दो जग हिन्दीमय कर दो ।। ब्रहम अक्षर इक ऊॅं ने रचदी ऐसी गजब कहानी 12 स्वर 36 व्यंजन से लिखदी हिन्दी वाणी मधुर कंठ करदो जग-जगमग जग कर दो जग हिन्दीमय कर दो मॉं सरस्वती शारदे - ऐसा वर दे दो जग हिन्दीमय कर दो ।। राजभाषा हिन्दी है अपनी प्यारी रास्ट्र् भाषा सभी भाषाओं की यह जननी मधुर-मधुर यह भाषा सबको स्वर दे दो ऐसा वर दे दो जग-जगमग जग कर दो जग हिन्दीमय कर दो मॉं सरस्वती शारदे - ऐसा वर दे दो जग हिन्दीमय कर दो ।। रस भी इसमें छंद भी इसमें अलंकारों से सजी हुई हिन्दी की बिन्दी पहने है प्यारी अपनी माता जय-जय-जय करदो जग हिन्दीमय कर दो मॉं सरस्वती शारदे - ऐसा वर दे दो जग हिन्दीमय कर दो ।। प्रिय पाठक, मुझे उम्मीद हे , आपको मेरी यह रचना पसंद आई होगी . आपसे निवेदन हे कि आप अपने विचार जरूर comment box में साँझा करें . मेरी और स्वरचित रचनाओं के लिए हमसे जुड़ें-...